Breaking

राव तुलाराम के नेतृत्व में चला था भीषण युद्ध -ओमप्रकाश यादव |

16 नवंबर 1857 को हुए स्वतंत्रता संग्राम ने रख दी थी स्वतंत्रता आंदोलन की नींव- राज्य मंत्री ओमप्रकाश यादव

चण्डीगढ़, 15 नवंबर –

देश की आजादी के लिए 16 नवंबर 1857 को स्वतंत्रता संग्राम में अहीरवाल के 5 हजार अनाम वीरों ने नसीबपुर नारनौल की रणभूमि में अपना सर्वस्व न्योछावर कर अपने प्राणों की आहुति दी थी। आज भी यहां वर्षा होती है तो नसीबपुर के मैदान की मिट्टी लाल हो जाती है। हरियाणा के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री श्री ओमप्रकाश यादव ने बताया कि नसीबपुर के मैदान में 1857 में रामपुरा के राजा राव तुलाराम व अमर शहीद राव गोपालदेव सहित हजारों वीरों ने मां भारती की आजादी के लिए अंग्रेजों से युद्ध लड़ा था। यहां के वीरों ने अंतिम सांस तक ब्रिटिश शासकों के खिलाफ संघर्ष किया था। स्वतंत्रता संग्राम के महानायक राव तुलाराम ने जहां मात्र 14 वर्ष की अल्पायु में ही राजकाज संभालकर अपनी सूझबूझ से अंग्रेजों की घेराबंदी की थी। वहीं राव गोपालदेव ने युद्ध के बाद अंग्रेजों की ओर से की गई सशर्त माफीनामे की पेशकश को ठुकरा दिया था। मेरठ से आरम्भ होकर 1857 की जनक्रांति पूरे देश में फैल गई। झज्जर नवाब को गिरफ्तार कर लिया गया तथा उसकी सेना नारनौल पहुंच गई। इधर से मेरठ के बागी सरदार राव किशन सिंह और गोपाल देव भी मेरठ से नारनौल पहुंच गए। रेवाड़ी से राव तुलाराम के सैनिक नारनौल आकर एकत्रित हो गए।

ओमप्रकाश यादव ने बताया कि जब अग्रेंजो को पता चला कि बागी सेनाएं नारनौल में एकत्रित हो गई तो उन्होंने कर्नल गेराड की अध्यक्षता में अंग्रेजी सेना भेजी। अंग्रेजी सेनाएं महेंद्रगढ़ पहुंच गई तो उन्होंने महेंद्रगढ़ किले पर कब्जा कर लिया। वहां से तोपें इत्यादि लेकर नारनौल की तरफ  चल पड़े। नारनौल में सेनाएं एक प्राचीन किलेनुमा सराय में एकत्रित हो गई। उन्होंने बताया कि बागी अंग्रेजी सेनाओं की तोपें नारनौल व महेंद्रगढ़ के बीच में स्थित नदी दौहान नदी में फंस गई। जब नारनौल में स्वतंत्रता सेनानियों को इसकी खबर मिली तो उन्होंने निश्चय किया कि वहीं पर उनको घेरा जाए। इस दौरान अंग्रेज सेनाएं नसीबपुर तक पहुंच गई और आंदोलनकारियों की नसीबपुर के मैदान में अंग्रेज सेना के साथ मुठभेड़ हुई। स्वतंत्रता सेनानियों का पहला हमला इतना भारी हुआ कि उनमें हलचल मच गई लेकिन अंग्रेजों ने स्वतंत्रता सेनानियों पर तोप से हमला शुरू किया। इससे स्वतंत्रता सेनानियों के राव किशन सिंह और राव गोपाल देव, हिसार के नवाब और अन्य व्यक्ति मारे गए। अंग्रेजों के सेनापति कर्नल गैराड को गोली लगी और वे भी मारे गए। इस युद्ध में स्वतंत्रता सेनानियों की हार हुई और अंग्रेंजों ने यहां पर बहुत बड़ा दमन चक्र चलाया। यहां पर काफी लोगों को सामूहिक फांसिंया दी गई तथा नारनौल शहर पर कब्जा करके काफी लोगों को मौत के घाट उतारा तथा लूटपाट मचाई।

राज्य मंत्री श्री ओमप्रकाश यादव ने बताया कि इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार के नाम पर पूरे भारत में अपना पैर जमा चुकी थी। अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो नीति सफल हो चुकी थी। एक- एक करके पूरे भारत सभी भाग अंग्रेजों के चंगुल में फंसते जा रहे थे। गरीब जनता को अंग्रेजों द्वारा बुरी तरह से पीसा जा रहा था। इन्हीं दरिंदगी को लेकर देसी सैनिकों और स्वतंत्रता प्रेमी जनता के मन में स्वतंत्रता रूपी भावना का ज्वाला का उदय हुआ। अंग्रेजों के दमन से मुक्ति पाने के लिए सन 1857 में स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी फैल उठी। इस क्षेत्र में इस क्रांति का नेतृत्व वीर केसरी अमर बलिदानी राव तुलाराम ने किया। राव तुलाराम का जन्म एक दिसंबर 1825 को हुआ था। वे रेवाड़ी के प्रभावशाली राज्य परिवार के प्रमुख नेता व प्रतिनिधि थे। राव तुलाराम एक कुशल प्रशासक एवं सेनानी थी। इनकी प्रजा इनकी न्यायप्रियता, देशभक्ति एवं कुशल प्रशासन से काफी प्रसन्न थी। राव तुलाराम अंग्रेजों के शासन को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे।

उन्होंने बताया कि 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की बागडोर अपने हाथ में ले ली। इनके एक भाई राव कृष्ण गोपाल ने इनकी प्रेरणा से दस मई 1857 को मेरठ में सैनिक विद्रोह की बागडोर संभाली और अंग्रेजों का सफाया करके दिल्ली में बादशाह बहादुरशाह जफर को भारत को स्वतंत्र शासक घोषित किया। इधर राव तुलाराम ने भारत के दास्तां की जंजीरें तोड़कर जिला गुरुग्राम और महेंद्रगढ़ के इलाके को विदेशी साम्राज्य से आजाद कर दिया।

ओमप्रकाश यादव ने बताया कि कर्नल फोर्ट और अंग्रेजी फौज को गुरुग्राम से मार भगाया। रेवाड़ी के नजदीक अंग्रेजों की छावनी की सफाया कर दिया और एक बड़ी फौज भर्ती करके देश की स्वतंत्रता के लिए अथक प्रयास किया। गोकलगढ़ में तोपें ढालने का कारखाना तथा टक्साल कायम करके दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में देशभक्त नेताओं को हर तरह की सहायता दी। अंग्रेजों के साथ इनकी अंतिम लड़ाई नारनौल से तीन मील दूर नसीबपुर के एतिहासिक रण स्थल 16 नवंबर 1857 को हुई। राव तुलाराम के नेतृत्व में हरियाणा और राजस्थान के क्षेत्रों में देशभक्त सुरमाओ ने इक_ा होकर आखिरी टक्कर ली और पूरी ताकत के साथ लड़े। अंग्रेजों के पास ज्यादा फौज, भारी गोला बारूद एवं तोपे होते हुए देशभक्तों के सामने इनके कदम नहीं टिक सके। पहले ही रोज के युद्ध में कर्नल जेरार्ड अपने बहुत से सैनिकों सहित राव तुलाराम के हाथों मारे गए।

इस युद्ध लगभग पांच हजार सैनिक बलिदान हो गए थे और आज भी यहां वर्षा होती है तो नसीबपुर का मैदान की मिट्टी लाल हो जाती है। कर्नल जेर्राड व अंग्रेजी सैनिक मारे जाने के बाद देशद्रोही पंजाब व राजस्थान की रियासतें अंग्रेजों की मदद के लिए पहुंच गई तथा स्वतंत्रता के दीवानों को घेर लिया। एक-एक देशभक्त कई-कई दुश्मनों को मारकर बलिदान हो गया। राव तुलाराम को सख्त हालत में युद्ध स्थल से उठाकर उनके साथियों ने सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया।

रावकृष्ण गोपाल और राव रामलाल जैसे योद्धा भी इस जंग में काम आये। यद्यपि इस लड़ाई में विजय अंग्रेजों के हाथ आई, फिर भी अंग्रेजी फौज को राव तुलाराम और उनके साथियों के अदभूत साहस और वीरता को देखकर दांतों तले उंगली दबानी पड़ी। राव साहब हिम्मत हारने वाले सेनानी नहीं थे। उन्होंने अपनी बची-खुची सेना को फिर से संगठित किया और हजारों कठिनाइयों के बावजूद अंग्रजी फौजों को चकमा देकर भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई जारी रखने के लिए कालपी में तात्यां टोपे और नाना साहब से जा मिले। परंतु अभी भी देश का भाग्य चक्र अंधकार में था।

ओमप्रकाश यादव ने बताया कि वहां भी इनके प्रयत्न सफल नहीं हो सके और भारतीय नेता एक-एक करके समाप्त होते गये और अंग्रेजों का कदम जमता गया। एक बार फिर राव तुलाराम ने अपने अद्भूत साहस, दूरदर्शिता और नैतिकता का परिचय दिया। कुछ साथियों को लेकर अपनी जान हथेली पर रख कर अंग्रजों की कड़ी निगरानी से बचते-बचाते भारत का सर्वप्रथम दूत बनकर विदेशों में पहुंचे, ताकि वहां की सहायता से भारत को स्वतंत्र किया जा सके। इन्होंने ईरान, रूस और अफगानिस्तान की हुकूमतों से मदद हासिल करने की कोशिश की। लेकिन अंग्रेजों के विरुद्ध इन देशों से मदद हासिल करने में सफल न हो सके। काबुल में भारत से बचकर निकले हुए विद्रोहियों को इक_ा करके पहली आजाद हिंद फौज बनाई। दुर्भाग्यवश भारत मां का यह बहादुर एवं कर्तव्यनिष्ठ सपूत अपने देश से हजारों मील दूर मातृभूमि की बेड़ियां काटने के प्रयत्नों में बीमार होकर हमसे सदा के लिए विदा हो गया। उस भारत माता के अमर सपूत का स्वप्न सन 1947 में साकार हुआ। भारत मां वर्षों की गुलामी से मुक्ति पा अपने लाडले सपूतों के लिए आज भी सिसकती है। आज राव तुलाराम के जीवन से एक अद्भुत देशभक्ति, महान त्याग एवं अपूर्व शौर्य की प्रेरणा मिलती है।

For More Information Stay Updated With : newsonline.media

newsonline

Recent Posts

HealthEdge Expands Employer Presence in India with New Bangalore Office, Promoting High Tech Innovation and Jobs in Healthcare

HealthEdge, a visionary leader in the healthcare technology industry, proudly announces the opening of its…

6 hours ago

MicrobioTx Unveils the FIRST Fingerprick-based Test to Profile Gut Microbiome

MicrobioTx, a new-age gut microbiome company, announced the commercial availability of Gut Function Test (GFT)…

6 hours ago

Scalene Coffee Research Organization Develops COPTERS (Coffee Pulping Water Recovery System) to Reduce Water Wastage in the Coffee Pulping Process

Scalene Coffee Research Organization a member of Organisation De Scalene Foundation, a global leader in…

6 hours ago

How India Borrows 2024: Home Credit India Study Reveals Aspirational Borrowing Trends, Rising Digital Adoption, Increase in EMI Cards & App-Based Banking

Home Credit India, a local arm of the leading global consumer finance provider, has released…

6 hours ago

Quantiphi, DDReg Partner to Transform Regulatory Reporting in Life Sciences Through AI

Quantiphi, a global AI-first digital engineering company and DDReg, a global leader in regulatory expertise…

8 hours ago

Truecaller SDK breaks new ground with over 7 billion+ sign-up requests

Truecaller continues to redefine mobile-first technology through its groundbreaking Truecaller SDK, the industry's leading solution…

11 hours ago