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विस अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता से मिले तिब्बती सांसद |

हरियाणा विधान सभा पहुंचा निर्वासित तिब्बती संसद का प्रतिनिधिमंडल

सांसदों ने कहा – चीन की ज्यादातियों से तिब्बत में हो रहा मानवाधिकारों का हनन

गुप्ता बोले – भारत और तिब्बत प्राचीन काल से अच्छे पड़ोसी, सांस्कृतिक रिश्ते मजबूत

निर्वासित तिब्बती संसद के प्रतिनिधिमंडल ने शुक्रवार को हरियाणा विधान सभा पहुंच विस अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता से मुलाकात की। इस दौरान प्रतिनिधिमंडल ने विस अध्यक्ष को तिब्बत के अहम मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। इससे पूर्व विस अध्यक्ष ने बुक्के, शॉल व स्मृति चिह्न भेंट कर तिब्बती सांसदों का स्वागत किया और उन्हें सदन दिखाया। प्रतिनिधिमंडल में सांसद सिरटा सुल्टिम, सांसद नांग्याल डोलकर और सांसद लामा रिंचिन सुल्टिम शामिल रहे।

विस अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा से तिब्बत की स्वायत्ता का सम्मान करते रहे हैं। तिब्बत और भारत ऐतिहासिक रूप से न सिर्फ अच्छे पड़ोसी रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे के हितों की रक्षा भी करते रहे हैं। गुप्ता ने कहा कि वे तिब्बतियन प्रतिनिधिमंडल की मांगों को प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और केंद्र सरकार के सम्मुख रखेंगे।

प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहीं सांसद सिरटा सुल्टिम ने विधान सभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता को बताया कि लोकतांत्रिक रूप से चुने जाने के बावजूद 17वीं निर्वासित तिब्बती संसद के सदस्यों को निर्वासित जीवन जीना पड़ रहा है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) द्वारा 1949 में तिब्बत पर आक्रमण करने के बाद से तिब्बती लोगों के मूलभूत मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। इसके चलते तिब्बती लोगों की विशिष्ट सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान खतरे में है। इसके चलते तिब्बत में स्थिति पिछले 7 दशकों में बद से बदतर हो गई है।

उन्होंने कहा कि तिब्बत और भारत के बीच मैत्रीपूर्ण सह-अस्तित्व और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का हजारों सालों का इतिहास रहा है। दोनों समृद्ध प्राचीन सभ्यताओं वाले पड़ोसी देश रहे हैं। ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि तिब्बत पर कब्जे से पूर्व चीन की भारत के साथ सीमा भी नहीं मिलती थी। इस कब्जे के बाद ही भारत का चीन के साथ सीमा विवाद भी पैदा हुआ है।

ज्ञान चंद गुप्ता ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार के मानकों के विपरीत तिब्बती संस्कृति को बहुसंख्यक हान संस्कृति में विलय किया जा रहा है। किंडरगार्टन की उम्र तक के तिब्बतियों से जबरन सामूहिक डीएनए नमूना संग्रह इसी दिशा में उठाया गया कदम है। ऐसा करके लोगों के निजी जीवन में जबरन घुसपैठ हुई है। चीन की इन क्रूर नीतियों के विरोध में फरवरी 2009 से अब तक 158 तिब्बतियों ने आत्मदाह किया है। प्रतिनिधिमंडल ने दलाई लामा की तिब्बत वापसी की मांग भी दोहराई।

 

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