अश्क़-ए-निस्बत मैं भर कर मिलना है उनसे हरे ज़ख्मों का इलाज़ करवाना है उनसे मस्त-ए-तरभ सी ज़िंदगी मैं तबुस्सम सा…
इश्क़ की तिशनगी हमे इस कदर लग गई हिकायत हमारी निसाब पर लिखी रह गई जफ़ा में रहे हुए क़वाम…