वक़्त बे वक़्त याद उसे करते रहे हिज्र की लो मैं ख़ुद को पिगलाते रहे ना मंज़िल-ए-ख़्वाब मालूम हमे…
ना जाने कौन हमारे पास से हो कर गुज़रा बंद पड़े दिल को उम्मीद तो दे के गुज़रा साँसे भी…
क़तार में खड़े है कब से हम ना जाने किस के लिए बस यूँ ही उनकी दीद के लिए इंतज़ार…
हम बोलते भी है तो अक्सर लगता है चिलाते है दिल-ए-दर्द की आवाज़ों को इस कदर दबाते है अर्ज़ करते…
ख़ामोश रहे वो जो जान कर भी अंजान बने रहे दो पल के सफ़र में वो हमारी हालात-ओ-हालत देखते रहे…
दिल नहीं लगता अब हमारा तो हमे इसआफ़ाक़ से जुदा करा दो सहन नहीं होता अकेलापन अब हमारा किसी से…
थोड़ा ही सही सफ़र तो किया अजनबी के साथ राबता तो किया हौंसला ना हुआ हमसे उनकी निस्बत में जाने…
साथ हमारे रह कर भी दूर हम से रहे उनके होते हुए भी अकेले पन से नाता हम जोड़ते रहे…
वो लफ़्ज़ कहा से लाऊ जो उन्हें समझ आ सके वो दिल कहा से लाऊ जिस पे वो राज कर…
उनकी उल्फ़त के उरूज में रहे हम ता उम्र फिर भी इसज़िंदगानी में हरुज़ से दूर रहे हम ता उम्र…
इल्ज़ाम हम पे कुछ ऐसा लगा हुआ है तसरीह में ज़िंदगी का उलजना लगा हुआ है लफ़्ज़ों के जाल में…
इत्र वो नये नये लगाते थे दोखे की बदबू को छिपा कर रखते थे अनजान को अपना बनाकर मारने के…
ज़िंदगी आधी बीता दी उनके इंतज़ार में लहू का रंग भी फ़ीका पड़ गया हिज्र की आग में अब तो…
धड़कन कैसे रुकती है मालूम हमे हो गया अकेले रहना कैसा लगता है उनका साथ जो छूट गया मक़ूफ़ रहे…
एसा किसी के साथ ना हो जो हुआ मेरे साथ आधी रात को आंसुओं से चेहरा धोना पड़ा है आधी…
दिल-ए-दरिया मैं आग सुलझी हुई है कम उम्र मैं यह गुस्ताखी हम से हुई है जिसे हम अपना समजतें थे…
क्या सही में जानते है लोग हमे हमारे बारे मैं अच्छा नहीं है बस यह जूठ ही तो जानते…
एक गुनहा फिर से करना है शहर-ए-इश्क़ में फिर से घूमना है आख़िर कही से तो हमे सकून मिलेगा टूटे…